करोड़ों का बजट मिलने के बाद भी संजय गांधी का हाल बेहाल,मरीजों को नहीं मिलती दबाएं

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करोड़ों का बजट मिलने के बाद भी संजय गांधी का हाल बेहाल,मरीजों को नहीं मिलती दबाएं

रीवा।मध्यप्रदेश सरकार के डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल नागपुर की तर्ज पर विंध्य क्षेत्र के रीवा को मेडिकल हब बनाने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे हैं तो वहीं संभाग के सबसे बड़े शासकीय संजय गांधी अस्पताल के बेलगाम प्रबंधन की उदासीनता के कारण सार्थक प्रयास पर निरंतर पानी फिर रहा है। जिस संजय गांधी अस्पताल को दवाओं के लिए सरकार सबसे ज्यादा बजट स्वीकृत करती है, वहीं पर अक्सर दवाओं का महासंकट मरीजों की परेशानी बढ़ाने का काम करता है। बताया जाता है कि निजी मेडिकल स्टोर को लाभ पहुंचाने के लिए संजय गांधी अस्पताल के बेलगाम कर्मचारी मरीजों और उनके परिजनों को भटकाने का काम ईमानदारी के साथ करते हैं। अब भला ऐसे हालात में रीवा किस तरह का मेडिकल हब बनेगा, शायद यह बताने की आवश्यकता नहीं है।

नित नए कारनामों को लेकर सुर्खियों में रहता है संभाग का संजय गांधी अस्पताल…

एक बार फिर से संभाग के सबसे बड़े अस्पताल के अस्पताल के अधिकारियों पर मरीज के परिजनों का आरोप । अस्पताल में अंदर नहीं मिलती दबाएं मरीज की जान बचाने बाहर प्राइवेट मेडिकल स्टोरों से दबाएं खरीदने पर मजबूर हैं। ऐसे आरोप अस्पताल प्रबंधन पर पहली बार नही लग रहे हैं। ऐसे आरोप अक्सर लगते रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यह उठता है जब अस्पताल में आने वाले मरीजों को दवाएं नहीं मिलती तो यह जो शासन द्वारा करोड़ों का बजट दवाओं के नाम पर मिलता है तो यह कहां जाता है। मतलब साफ है इस बड़े बजट का बंदरबाट कोई आम नहीं है।

इनका कहना है

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण दवाओं की खरीदारी नहीं हो पाई थी इसलिए बाहर से दबा लिखना डॉक्टरों की मजबूरी थी परंतु अभी ऐसी कोई समस्या नहीं है। सभी दबाएं अस्पताल में उपलब्ध हैं। राहुल मिश्रा अधीक्षक संजय गांधी अस्पताल रीवा

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