एक रहस्यमय वीरान गांव – Keoti

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एक रहस्यमय वीरान गांवKeoti

गांव तो आपने कई देखे होंगे लेकिन आज हम आपको रीवा के निकट एक ऐसे वीरान गांव के सैर पर ले चलते है जिसे आपको देखकर डर भी लगेगा और रोमांच भी होगा यहां एक खूबसूरत गहरी घाटी है घाटी के एक तरफ एक ऐसा झरना है जिसे देखकर आपका मन करेगा कि आप यहां से कभी जाए ही ना घाटी के दूसरे तरफ सैकड़ो साल पुराना एक रहस्यमई किला है इसके बारे में गांव वाले ऐसा मानते हैं कि कुछ बुरी आत्माएं यहां भटकती हैं दिन में लोग इस किले के आसपास घूमते दिखाई देंगे लेकिन रात के समय स्थानीय लोग इसके पास जाने से डरते हैं.

किसी जमाने में यह किला डाकुओं का गढ़ हुआ करता था इसके ऊपर फिल्म भी बन चुकी है बिंदिया और बंदूक इस किले से कई रहस्यमई गुफाएं भी निकलती हैं लेकिन वह कहां है इसके बारे में स्थानीय लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है अगर आप अकेले हैं तो इस किले के भीतर जाने से बचें क्योंकि यहां अक्सर लूट-पाट की कई घटनाएं सुनने को मिली है क्योंकि किले के भीतर नशीले पदार्थों का सेवन करने वाले कुछ लोग नशा करते हुए मिल जाते हैं ।

यहां से सबसे नजदीकी पुलिस थाना 11 किलोमीटर दूर सिरमौर में है और एक पुलिस चौकी 8 किलोमीटर दूर लाल गांव में है तो सांझ ढलने से पहले यहां से निकलना अधिक उचित है हां, अगर आप कई लोग हैं तो इस किले में व्याप्त सन्नाटे का रोमांच ले सकते है ।

ध्यान रहे कि रुकने की कोई व्यवस्था न होने के कारण ठहरने की मंशा लेकर यहां ना आए ना तो यहां कोई ढाबा है ना कोई रेस्टोरेंट तो खाने पीने का जुगाड़ पहले से ही कर ले।

बेशक यह जगह बेहद ही खूबसूरत दिखती है लेकिन इसकी निर्जनता और यहां पर फैला हुआ सन्नाटा आपके भीतर एक डर भी पैदा करता है। मुख्य सड़क से झरने तक पहुंचने के लिए भी बहुत ही कठिन रास्ता है अगर आप एक अच्छे चालक नहीं है तो आपकी गाड़ी का निचला हिस्सा पत्थरों से टकरा भी सकता है यहां तक की टायर नुकीले पत्थरों से रगड़ खाकर फट भी सकते हैं। इसका ध्यान रखते हुए आपको बड़े ही सावधानी से वाहन चलाना पड़ता है । यहां से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है रीवा जो यहां से 45 किलोमीटर दूर है यहां आने के लिए आपको अपने ही वाहन का प्रयोग करना पड़ता है।

मध्य प्रदेश की सीमा प्रारंभ होते ही टमस नदी को पार करते हुए आपको काफी दूर से पहाड़ियों की एक दीवाल नजर आती है यह विंध्य श्रृंखला की पहाड़ियां है जो सैकड़ो किलोमीटर तक फैली हुई है 10 किलोमीटर की यात्रा के बाद जब आप इन पहाड़ियों के करीब पहुंचते हैं तब रोमांस की अनोखी लहर आपके पूरे शरीर में दौड़ने लगते हैं इतना तीखा दल देखकर मन में संदेह पैदा होने लगता है कि गाड़ी यहां चढ़ पाएगी या नहीं दिमाग भीतर से जैसे कुछ बुदबुदाने लगता है अगर टायर पंचर हो गया तो? तो क्या करेंगे? इस संदेश की पुष्टि होने लगती है जब जगह-जगह पंचर हुई गाड़ियां नजर आने लगती है।

चढ़ाई पर चढ़ते समय टायरों पर जरूरत से ज्यादा दबाव पढ़ने के कारण ऐसा होता है ऐसे विचारों के प्रवाह में 4 किलोमीटर सुहागी पहाड़ी पार करने के बाद इस यात्रा में हुए आनंद की भरपाई करने की बारी आती है टोल चुका कर यहां से यात्रा करते वक्त आपको एक्का-दुक्का पत्थरों से निर्मित पक्के मकान काफी दूर-दूर बने नजर आते हैं।

दिमाग सोचने पर मजबूर हो जाता है कि इस निर्जन में लोग रहते कैसे हैं? पीने का पानी कहां से लाते होंगे? पथरीली जमीन पर खेती कैसे करते होंगे?ऐसे ही हैरान परेशान दिमाग नेशनल हाईवे 30 पर 18 किलोमीटर की यात्रा करके कलवारी पहुंच जाता है ध्यान रहे कि यह सड़क आपको सीधे मैहर तक ले जाती हैं।

यही से एक सड़क लाल गांव की तरफ जाती है इसीलिए इस तिराहे को लाल गांव मोड़ बोला जाता है ।यह सड़क है राष्ट्रीय राजमार्ग 135 BD जो लाल गांव, क्योटी और सिरमौर को आपस में जोड़ती है। इस सड़क पर आगे बढ़ते हुए आपको विचित्र अनुभव होता है दूर-दूर तक फैले हुए लाल मिट्टी के मैदान, इक्का-दुक्का पेड़,घास चरते हुए पालतू पशु और हर किलोमीटर पर आपके दूरी की जानकारी देते हुए पत्थर अगर आप शहरों में रहते हैं तो ऐसे निर्जनता और विरानापन देखकर सम्मोहित हो जाएंगे।

रास्ते में कई छोटे-छोटे गांव नजर आते हैं 17 किलोमीटर बाद एक बड़ी बाजार नजर आती है लाल गांव अगर कुछ खाने पीने का सामान खरीदना चाहे तो खरीद सकते हैं क्योंकि यहां से 8 किलोमीटर दूर क्योटी गांव तक आपको सिर्फ सन्नाटा ही मिलने वाला है।

(क्योटी गांव) इस ग्राम सभा के आसपास छोटे-छोटे लगभग 12 टोले बसे है जिसमें से एक है छोटा सा क्योटी गांव। इस गांव की आबादी होगी लगभग 300 के आसपास इसके ज्यादातर लोग या तो किसान हैं या तो पैसा कमाने के लिए दूसरे शहरो में मेहनत मजदूरी करते हैं।

क्योटी गांव किसने बसाया?

1495 के आसपास बांधवगढ़ के राजा बघेल वंशी शालिवाहन के पास सिकंदर लोधी ने अपनी एक बेटी के शादी करने का प्रस्ताव भेजा जिसके ठुकराए जाने पर 1499 में बांधवगढ़ के कई क्षेत्रों में सिकंदर लोधी ने आक्रमण कर दिया और खड़ी फसलों को जला दिया गया। हर संभव कोशिश करने के बाद भी बांधवगढ़ का किला जीतना संभव न हो सका।

इस युद्ध के बाद राजा शालीवाहन ने विशाल बांधवगढ़ साम्राज्य के चार टुकड़े किए और अपने चार पुत्रों में बांट दिया बांधवगढ़ का किला मिला सबसे बड़े बेटे वीर सिंह देव को, उत्कल का क्षेत्र मिला उदय करण को, घुमान का क्षेत्र मिला राजकुमार जनक और अंत में क्योटी का क्षेत्र मिला राजकुमार नागमल देव को।

सैनिक और ग्रामीणों के मदद से राजा नागमाल ने महाना नदी के किनारे क्योटी जलप्रपात के ठीक सामने किले का निर्माण कराया और यही से क्योटी राजघराने का उदय हुआ।

1857 के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जब पूरे देश मे अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की भावना चरम सीमा पर थी ठीक उसी समय क्षेत्र पर अधिकार रखने वाले ठाकुर रणमत सिंह ने अपने कई साथियों के साथ मिलकर अंग्रेजों के कई ठिकानों पर धावा बोलना शुरू कर दिया और चुप चाप कई जगह पर रहने लगे।

एक अंग्रेज ने मुगलों को लालच देकर ठाकुर रणमत सिंह की गुप्त जानकारी हासिल की और हमला कर दिया अंग्रेजों से भीषण युद्ध के बाद ठाकुर डाल्टमल के मदद से वह सभ्यता पूर्वक यहां से निकलने में कामयाब हुए हालांकि बाद में उनका धोखे से पकड़ा गया और 1859 में आगरा की जेल में फांसी दे दी गई

उसके बाद से ये किला अंग्रेजी सैनिकों के द्वारा ही इस्तेमाल किया जाने लगा। अंग्रेजी सैनिक पास के गांव से स्त्रियों को उठाकर ले आते और उनके साथ इसी किले के भीतर दुराचार करते, जो स्त्रियां इसका विरोध करती उनका कत्ल कर दिया जाता। गांव वाले ऐसा मानते हैं कि तब से यह किला भयावह हो गया और रात के समय इस किले से डरावनी आवाजे आती है।

धीरे-धीरे अंग्रेजी सरकार ने उपेक्षा का शिकार होकर जर्जर होती गई दीवार और छत को देखकर इस किले को अपनी मौत मरने के लिए छोड़ दिया।

आज इस किले की उम्र 500 साल के आसपास हो चुकी है । पुरातत्व विभाग हालांकि इसे अपने संरक्षण में ले लिया है लेकिन इसके देखभाल की अपेक्षा आज भी हो रही है जबकि हर शनिवार और रविवार को इस किले से दिखाई देने वाले क्योटी झरने को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं 322 फीट की ऊंचाई के साथ यह भारत का 22 वं सबसे ऊंचा जलप्रपात है।

ध्यान रहे कि अगर आप यहां रुकने के उद्देश्य से आ रहे हैं तो बहुत अच्छी सुविधा मिलने की आशाएं मत रखिए। लोग बताते हैं कि यहां से 10 किलोमीटर दूर सिरमौर तहसील में मात्र एक प्रतिक्षा लॉज में आप रह सकते हैं। यहां पर आप झरना देखे अगर मन करे तो नहाए, सेल्फी ले, वीडियो बनाए, मंदिर में दर्शन भी करें ,कुछ लोगों के साथ मिलकर किले का भी भ्रमण कर सकते हैं लेकिन सूरज ढलने से पहले यहां से निकल जाइए सुरक्षित।

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