Mysterious temple: आखिर क्या कारण रहा होगा कि लगभग 600 फीट की ऊंचाई पर सुनसान पहाड़ी के ऊपर एक रहस्यमय मंदिर
mysterious temple: प्रयागराज से 200 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित है मैहर इसका नाम मैहर इसलिए पड़ा क्योंकि यहां पर माता सती का हार गिरा था। यहां से जुड़ी कोई और घटना है? क्या सचमुच यह मंदिर 1000 साल पुराना है ?क्या सच में यहां आल्हा ऊदल फूल चढ़ाने आते हैं? या फिर बात कुछ इससे भी ज्यादा गहरी है?
ऐसे ही रहस्य से भरे हुए इस मंदिर में रोज हजारों की संख्या में लोग दर्शन के लिए आते हैं और नवरात्रि में संख्या विकराल हो जाती है आखिर क्या है इस मंदिर का रहस्य?
कुछ कहानियों में इसे अज्ञातवास के दौरान पांडवों द्वारा स्थापित कराया गया है और कुछ मैं कहा गया है कि इस मंदिर को आठवीं सदी में आदिशंकरा चार्य ने बनवाया है। भविष्य पुराण, आल्हा खंड, पृथ्वीराज रासो और लिखित शास्त्रों के आधार पर कई कहानियां है। भारतीय परिवेश में जब कोई कथा बहुत अधिक प्रसिद्ध होती है तो उसमें वास्तविक एवं काल्पनिक घटनाओं के मिश्रण से यह तय कर पाना बहुत ही कठिन हो जाता है कि इस कथा को कितना अधिक महत्व दिया जाए जो बात तर्क पर होगी हम सिर्फ उसी पर विश्वास करेगें।
आल्हा उदल का इतिहास
लगभग 800 साल पहले यानी 12वीं सदी में महोबा के आखिरी चंदेल राजा थे राजा परमर्दी देव उर्फ परमाल जिनकी पत्नी थी रानी मल्हाना एक दिन जंगल से लौटते हुए त्रिकोण पहाड़ी के निकट राजा परमाल ने दो पहलवानों का बल युद्ध देखा उनके युद्ध कौशल से प्रभावित होकर वह उन्हें अपने साथ महोबा ले आए उनका नाम था जस्सराज और बछराज।
जसराज को जासर के नाम से भी पुकारा जाता था। यह लोग वनाफिर जाति से थे कुछ इन्हे अहीर मानते हैं तो कुछ क्षत्रिय। राजा के कहने पर जासर महोबा तो आ गया था पर जंगल में अपनी पत्नी देवला (देवकी) और दो बेटे आल्हा और ऊदल को छोड़कर ,लेकिन जाने से पहले राजा परमाल ने उसकी पत्नी देवला को अपने गले का हार और कुछ स्वर्ण मुद्राएं भेंट स्वरूप दी ताकि आल्हा और उदल का लालन पालन आसानी से हो सके।
जस्सराज और बछराज ने महोबा को सुरक्षित रखने के लिए कई युद्ध लड़े। ऐसे ही जब माधवगढ़ का राजा करिया राय ने महोबा पर आक्रमण किया तो दोनों योद्धा बड़ी शक्ति से लड़े लेकिन करिया राय ने उन्हें बंदी बना लिया और यातना देते हुए बनाफुर कबीले तक ले आया।
पत्नी देवलाऔर दोनों बेटों आल्हा और ऊदल के सामने उनका सिर काट दिया गया यह कहते हुए की जो भी राजा परमाल का साथ देगा उसका यही अंजाम होगा।राजा परमाल के द्वारा दिए गए हार को भी उसने देवला के गले से ऐसे छीना की नस कट जाने की वजह से उसने भी प्राण त्याग दीए जाते-जाते उसने उसके कबीले के लोगों से भी लूट-पाट की और बस्ती को तहस-नहस कर दिया।
तब आल्हा ने प्रण लिया कि जब तक वह कैरिया राय को मार कर अपने माता-पिता की मृत्यु का बदला नहीं ले लेगा तब तक चैन से नहीं बैठेगा कबीले की सुरक्षा के लिए वह पहाड़ की ऊंची चोटी पर जाकर रहने लगा ताकि चारो दिशाओं में नजर रखकर दूर से जाती हुई शत्रु सेना की जानकारी पहले से ही कबीले के लोगों को पहुंचा सके लेकिन आल्हा समझ नहीं पा रहा था कि अपनी मां का बदला कैसे ले…इसी चिंता में सोते हुए एक रात आल्हा ने अपनी मां को देखा जो
एक दिव्य रूप में नजर आई अचानक उन्होंने कैरिया राय के गर्दन से लटक रहे हार को छीन कर उसका गला काट दिया और पहाड़ी में समा गई अपनी मां का जो स्वरूप आल्हा ने सपने में देखा उसी स्वरूप को पहाड़ी पर स्थापित करके वह रोज उनकी पूजा करने लगा आल्हा पर इन सब सपने का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा सपने को वह मां का आदेश समझकर करिया राय से युद्ध करने के लिए वह अपनी गुप्त सेना बनाने लगा कबीले के लोगों को मल युद्ध का प्रतिक्षण देने के लिए उसने त्रिकूट की पहाड़ियों में एक गुप्त अखाड़ा बनाया ।
इधर राजा परमाल की सेना बिना किसी योग्य सेनापति के निरंकुश व कमजोर हो चुकी थी । राजा परमार तक जब इस गुप्ता अखाड़े की जानकारी पहुंची तो वह स्वयं आल्हा से मिलने पहुंचे और उन्हें अपने साथ महोबा ले आए ।रानी मल्हाना ने दोनों को अपने बच्चों के रूप में स्वीकार कर उनका लालन-पालन किया शीघ्र ही युद्ध का प्रतिक्षण करके आल्हा ने सेनापति के रूप में युद्ध भूमि पर कदम रखा और कैरिया राय की गर्दन काट कर पहाड़ की चोटी पर रखी अपनी मां की मूर्ति के चरणों पर समर्पित कर दिया तभी से उसे मूर्ति को मां शारदा के नाम से पहचाना जाने लगा।
शारदा यानी सरस्वती अर्थात विद्यावाणी और अध्यात्म की देवी जिससे आल्हा को प्रेरणा मिली कैरिया राय को मारने की शीघ्र ही करिया राय को मारकर अपनी मां का हार वापस लेकर उसे मूर्ति पर चढ़ा दिया तब से इस क्षेत्र को मैहर के नाम से जाना जाने लगा। कहते हैं अपने जीवन के आखिरी 12 साल आल्हा ने इसी मंदिर में समाधी और ध्यान करते हुए बिताया अपनी मां के उस देवी स्वरूप को फिर से देखने के लिए लेकिन आल्हा को वह दर्शन हुए कि नहीं यह कोई नहीं जानता।
और सबसे बड़ा रहस्य है आल्हा की मौत को लेकर आल्हा की मौत कैसे हुई? इस बारे में कोई भी प्रमाण नहीं है कुछ लोग मानते हैं की आल्हा ने समाधि की परम अवस्था हासिल करके अंतर ध्यान हो गए, तो कुछ का कहना है कि उन्होंने इस पहाड़ी में बने किसी गुप्त गुफा में हमेशा के लिए समाधि ले ली पर्याप्त साक्ष ना होने के कारण स्थानीय लोग ऐसा मानते हैं की आल्हा आज भी जीवित है और भोर होते ही अपनी मां के चरणों में फूल चढ़ाने और आरती करने के लिए आते हैं।
मैहर के इस अनसुलझे रहस्यो को समझने के लिए आपको सपने और समाधि के रहस्य को समझना होगा। आखिर हमें सपने क्यों आते हैं? कौन सी रहस्यमई शक्ति इसके पीछे काम करती है?
उदल की मौत कैसे हुई?
इसका उत्तर हमें गुरु गोरखनाथ कि कथा से मिलता है कहते हैं कि जब मां शारदा की ख्याति दूर-दूर तक फैलने लगीं और दूर-दूर से लोग यहां दर्शन करने के लिए आने लगे तब एक दिन गुरु गोरखनाथ जी मां के दर्शन के लिए यहां पधारे यह वह समय था जब करिया राय को मारकर आल्हा एक बड़े भाई होने के नाते ऊदल की परवरिश करने में पूरी तरीके से समर्पित हो चुके थे उसे अपने मृत्यु का भय नहीं था पर अपने छोटे भाई उदल को वह प्राणों से भी प्रिया मानता था इसलिए वह युद्ध से परहेज करने लगा था ।तब गुरु गोरखनाथ ने इसी मंदिर में आल्हा को समझाया कि तुम एक वीर योद्धा हो तुम्हारा काम है अपनी मातृभूमि के लिए जीना मर जाना।
आल्हा के दिल से मृत्यु का भय निकालने के लिए उन्होंने कहा कि हर युद्ध में तुम्हारी जीत होगी जिस पर जाने से पहले तुम दोनों इस मंदिर में भोर होते ही सबसे पहले मां का आशीर्वाद लेकर निकलोगे । गुरु की आजा को देव वाणी मानकर आल्हा ने किसी भी युद्ध पर जाने से पहले अपने भाई उदल के साथ इस पहाड़ी की कठिन चढ़ाई पर चढ़के मां के दर्शन के लिए आते थे अब यह संयोग था या गुरु का आशीर्वाद की उन्होंने कई लड़ाईयो में विजय प्राप्त की आल्हा खंड काव्य के अनुसार उन्होंने कुल 52 लड़ाइयां लड़ी थी जिनमें से 51 में उनकी जीत हुई हालंकी इतिहासकार ऐसे तथ्यों को सटीक नही मानते।
उदल की मौत
आज से लगभग 1000 साल पहले पृथ्वीराज चौहान बुंदेलखंड की धरती पर अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए महोबा पर आक्रमण किया राजा परमाल ने आल्हा-उदल को इस युद्ध का कार्यभार सौंपा युद्ध के कुछ दिन पहले आल्हा ने अपने भाई उदल को सेवा की तैयारी के लिए महोबा मे छोड़कर मां शारदा के दर्शन के लिए मैहर अकेले ही आ गए। लोग कहते हैं कि शायद यही वह कारण था कि पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध करते हुए उदल वीरगति को प्राप्त हो गए अपने भाई की मृत्यु का बदला लेने के लिए आल्हा ने अपनी पूरी शक्ति से पृथ्वीराज चौहान से युद्ध किया।
अंतिम युद्ध से एक रात पहले गुरु गोरखनाथ आल्हा से मिलने पहुंचे लोग कहते हैं यहीं पर गुरु गोरखनाथ ने आल्हा से वचन लिया कि तुम पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में भले ही हरा दो लेकिन उन्हें कोई क्षति नहीं पहुंचाओगे गुरु के वचनों से आल्हा आहत हुए और उन्होंने भाई की मृत्यु का बदला नाम ले पाने के कारण शोक से न सिर्फ युद्ध और सभी सांसारिक मोह माया को त्याग दिया फिर त्रिकोण पर्वत पर स्थापित मां शारदा के मंदिर में जीवन के आखिरी चरणों तक एकांत ही जीवन जीते रहे।
राजा दुर्जन सिंह और गले की कथा
कहते हैं आल्हा-ऊदल के चले जाने के बाद पिछले 8 साल में 800 सालों में एक ऐसा दौर भी आया जब कई सालों तक मंदिर की महिमा धूमिल पड़ गई समय के साथ-साथ पहाड़ और उस पर स्थापित की गई मंदिर और मां शारदा की मूर्ति घने जंगलों के ओट में समा गई।
आज से लगभग 200 साल पहले जब मैहर पर राजा दुर्जन सिंह उर्फ जुदेव का राज्य था तो एक दिन एक ग्वाला उनसे मिलने गया उसने बताया कि मंदिर की चोटी पर एक छोटी सी गुफा में मां की मूर्ति है जिसके गले में हार है और उसके आसपास भी तरह-तरह के आभूषण फैले हुए हैं देखने से ऐसा लगता है कि वह मूर्ति 100 से 200 साल पुरानी है सभा में मौजूद इतिहास की गहरी समझ रखने वाले एक मंत्री ने शंका जताई कि शायद यह वही मूर्ति हो सकती है जिसके बारे में कहा जाता है कि आल्हा ने स्थापित किया था राजा दुर्जन सिंह ने तत्काल ही उस चरवाहे के साथ वहां पर पहुंचे और सारी बातें सच निकली सैकड़ो साल पहले लोगों द्वारा चढ़ाए गए आभूषण आज भी उस मूर्ति के आसपास बिखरे पड़े हैं।
मैहर को आर्थिक रूप से पूरा संपन्न बनाने के लिए उन्होंने पूरा मंदिर का निर्माण कराया और पहाड़ी के चारों तरफ घुमावदार सीढ़ियां बनवाई। मंदिर के प्रचार-प्रसार के लिए भी उन्होंने एक समिति का गठन किया और इसी तरह आज मैहर माता का मंदिर दूर-दूर तक अपनी पौराणिक और ऐतिहासिक ख्याति के लिए जाना जाता है। आज न केवल पर्यटन और कई फैक्ट्रियों से भी मैहर की अर्थव्यवस्था चलती है।
+ There are no comments
Add yours