Ayodhya Dham: अयोध्या नगरी के वो रहस्य जो आज तक रहस्य ही रह गए
Ayodhya Dham: ये है सरयू नदी किनारे बसी अयोध्या नगरी । महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखे गए रामायण का केंद्र। बालखंड के अनुसार श्री राम का जन्म यहीं पर हुआ और उत्तराखंड में उनका तारघाट पर जल समाधि लेने के साथ ही अंत भी।
गुप्तार घाट
19वीं सदी में अयोध्या के राजा दशरथ सिंह द्वारा बनवाया गया मंदिर आज भी घाट पर मौजूद है। यह जगह अयोध्या से 10 किलोमीटर दूर पश्चिम की ओर फैजाबाद छावनी में स्थित है। इतिहासकारों के अनुसार 600 साल पहले 16 वी सदी मे जिस समय भारत में विदेशी आक्रमणकारी मंदिर की मूर्तियों को तोड़ रहे थे तब अयोध्या के संतूनी जन्म भूमि में विराजमान भगवान श्री राम जी की प्रतिष्ठित मूर्ति को गुप्तार घाट नमक जल समाधि देकर रेत में दबा दिया था।
बाद में यही प्रतिमा रानी कुँवर गणेश ओरछा लेकर गई और वहां स्थापित कर दी। राजा राम मंदिर का निर्माण करवाया। इसलिए आज भी ओरछा को बुंदेलखंड की अयोध्या कहकर पुकारा जाता है।
नागेश्वर मंदिर और राम की पीढ़ी पुराणों के अनुसार अयोध्या को श्री राम के पूर्वज मनु व इक्ष्वाकु ने स्थापित किया था इन्ही के 64 वंशज ने श्री राम के बाद अयोध्या को कुश ने फिर से बसाया। लेकिन अयोध्या कितनी बार बसी कितनी बार उजड़ी इसका कोई भी उल्लेख न पुराणों में मिलता है और ना ही इतिहास में। कुछ विशेषज्ञ ऐसा मानते हैं कि उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने लगभग 2000 वर्ष पहले अयोध्या के प्राचीन नगर की खोज करने के लिए सरयू नदी के किनारे कई प्राचीन शिव मंदिर को लेकर गहन अध्ययन किया।
विक्रमादित्य के नवरत्नों में कालिदास, घटखर्पर, बेतालभट्ट, क्षपणक, वराहमिहिर, वररुचि, शंकु, अमरसिंह एंव धन्वन्तरि शामिल थे।
इन लोगों ने रामायण के आधार पर अयोध्या को खोजने एवं पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आखिरकार उनकी यात्रा 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक नागेश्वर नाथ मंदिर पर आ के समाप्त हुई।
इस जगह पर सरयू नदी का बहाव पूर्व दिशा की ओर हो जाता था। मंदिर को लेकर पौराणिक कथा थी कि राम के पुत्र कुश सरयू में स्नान करने के बाद वह रोज अपनी पत्नी के साथ अयोध्या के सुख समृद्धि के लिए इसी मंदिर में ध्यान किया करते थे। आज भी यह मंदिर सरयू नदी के किनारे राम की पीढ़ी नमक घाट पर स्थित है।
आज की अयोध्या जिस रूप मे दिखाई पड़ती है उसकी रूपरेखा राजा विक्रमादित्य के नवरत्नों द्वारा तैयार की गई थी। माना जाता है कि उन्होंने एक 1 वर्ष के प्रत्येक दिन के लिए रामायण के प्रत्येक पात्रोंके 365 मंदिरों का निर्माण करवाया गया था। इसमें वरहमिहिर का ग्रह नक्षत्रो के आधार पर अयोध्या को वास्तु शास्त्र के हिसाब से बनाया गया था उन्होंने न सिर्फ इस नगर को बसाया बल्कि रामायण के सभी पात्रों के नाम पर भव्य मंदिर और घाटों का निर्माण किया।
जिसके बाद समय-समय पर इस जगह की भव्यता ने लोगों को यहां पर आकर्षित किया। आगे चलकर कई राजा, संत एवं अलग-अलग धर्म के लोगों ने यहां पर अपने-अपने आस्था को भी स्थापित किया। जिसमें बौद्ध, जैन, मुगल आदि विभिन्न धर्मो से लेकर गुप्त काल, नंद वंश मौर्य एव शांगवंश के राजा भी शामिल थे।
जन्मभूमि एवं कार्यशाला
नागेश्वर नाथ मंदिर के आसपास के ऊंचे टीले थे जो वहांपर रहने वाले नागरिकों के आस्था के प्रमुख केंद्र थे। सबसे प्रसिद्ध था राम टीला जिस पर काफी प्राचीन भवनो के अवशेष थे। स्थानीय लोगों के अनुसार यहां दशरथ की सबसे बड़ी पत्नी कौशल्या का भी महल था। इसी महल में श्री राम का जन्म हुआ पुराने अवशेषों को फिर से जीवंत करने के लिए विक्रमादित्य ने इसी टील के चारों तरफ एक विशाल कोर्ट का निर्माण करवाया और तब से इसे श्री राम जन्मभूमि रामकोट के नाम से जाना गया।
हजारों वर्षों तक चलेबाहरी आक्रमणकारिर्यों ने अयोध्या को जीतने के लिए हमेशा इसी कोर्ट को निशाना बनाया। कोर्ट के भीतर बने श्री राम मंदिर को सबसे अधिक क्षति पहुंचाई मुगल शासक बाबर के सेनापति मीर बाकी ने उसने कई मंदिरों को तुड़वाकर उसके मलबो से बाबरी मस्जिदों का निर्माण करवाया। तब से न जाने कितने राजाओं ने राम जन्म भूमि पर अधिकार करने के लिए कई युद्ध किया अपने प्राण त्यागे।
कई कार सेवक बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करने के लिए पुलिस द्वारा चलाई गई गोलियों से शहीद हुए। आज भी अयोध्या के कारसेवकपुरम मे राम का वह ढाँचा रखा है जिसको साकार होता देखने के लिए समय-समय पर सैकड़ो लोगों ने बलिदान दिए। आखिरकार इतने लंबे विवाद के बाद डॉक्टर बीबी लाल कि खनय रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से 9 नवंबर 2019 को श्री राम के मंदिर का ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
इसके बाद श्री राम जन्मभूमि आश नामक स्थान पर मंदिर निर्माण के लिए काकशाला बनाई गई। अयोध्या में आने वाले पर्यटक यहां आकर राम मंदिर के कार्य का साक्षी बन सकते हैं।
हनुमानगढ़ी
दूसरा था हनुमान टीला इसके बारे में कहा जाता था श्री राम ने जल समाधि से पहले हनुमान को अयोध्या की रखवाली की जिम्मेदारी देते हुए इसी टीले में बने महल में रहने का आदेश दिया। यह इतना ऊंचा टीला है कि यहां से आप पूरी अयोध्या को देख सकते हैं। राजा विक्रमादित्य ने यहाँ पर कोर्ट का निर्माण करवाया। लेकिन 17वीं शताब्दी आते – आते ये कोर्ट बाहरी आक्रमण कार्यों एवं कल के मार्ग से खंडहर हो गया। 1740 में अवध के नवाब शुजाउद्दौला के बीमार बेटे कि जान बचाकर निर्वाणी अखाड़ा के शिष्य अभय राम ने हनुमान कोर्ट मे एक भव्य मंदिर के निर्माण की इच्छा रखी।
नवाब के आदेश पर 52 भीघा जमीन मंदिर को उपलब्ध कराई गई। लाल सीताराम के द्वारा लिखी गई किताब अयोध्या का इतिहास नमक पुस्तक के अनुसार 1775 -76 के आसपास अगले नवाब आसफ़-उद-दौला के मंत्री टिकट राय ने हनुमानगढ़ नमक मंदिर के निर्माण का आखरी कार्य संपन्न करवाया।
श्री राम जन्मभूमि के बाद अयोध्या में आने वाले पर्यटकों के लिए यह सबसे अधिक आकर्षण एवं श्रद्धा का केंद्र है।
लक्ष्मण टीला
तीसरा था लक्ष्मण टीला विक्रमादित्य को यहां पर खंडहर हो चुके महल के अवशेष प्राप्त हुए यह ऐसा स्थान था जहां से अयोध्या की पश्चिमी छोर से दूर तक नजर रखी जा सकती थी। मान्यता थी कि यहां पर श्री राम ने लक्ष्मण जी के लिए इस किले का निर्माण करवाया था। जिस पर रहते हुए ऊंचाई से ही
पश्चिम से आने वाले शत्रुओ की जानकारी मिल सके।
आज अकेला एक नया स्वरूप में सरयू के नदी के किनारे मौजूद है। जहां से नदी के विस्तार को भली भांति ही देखा जा सकता है। विक्रमादित्य से लेकर आज तक यह किला लगभग 2000 साल का परिवर्तन अपने भीतर समेटे आज भी खड़ा है। धर्म शास्त्रीय ऐसा मानते हैं कि लक्ष्मण ने गोमती नदी के किनारे एक नया नगर बसाया था जो लक्ष्मणपुर के नाम से पुराणों में मिलता है। और विशेषज्ञ के अनुसार आज लखनऊ के पौराणिक काल का लक्ष्मण पूरा हो सकता है। यहां पर भी लक्ष्मण किला नामक एक जगह है जिसे आज पीने वाली मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है।
मणि पर्वत
चौथा तिल था मणि पर्वत इसके बारे में मान्यता है कि श्री राम और सीता सावन के महीने में चारों ओर फैली हरियाली को देखने के लिए और साथ में झूला झूलने के लिए यहां आते थे आज भी सावन के महीने में स्थानीय लोग यहां आकर श्री राम और माता सीता की मूर्तियों को झूला झूल कर उसे परंपरा का पालन करते हैं। विक्रमादित्य ने किस टीले पर भी एक मंदिर का निर्माण करके इसको पुनः जीवन दे दिया। भारतीय पुरातत्व विभाग के अनुसार महात्मा बुद्ध ने अयोध्या में 6 वर्ष इसी मणि पर्वत पर बिताकर अपने शिष्यों को बौद्ध धर्म का उपदेश दिया।
सम्राट अशोक के द्वारा बनवाया गया एक स्टॉप आज भी यहां मौजूद है। पर्वत के पास ही प्राचीन बौद्ध मठ के साथ ही पीछे की तरफ मुगलों के समय में बनाई गई एक कब्रगाह भी मौजूद है।
कनक भवन
कनक भवन के बारे में मान्यता यह है कि इससे महारानी कैकई ने सीता जी को मुंह दिखाई में दिया था। तब इसकी दीवारें सोने से अलंकृत थी। महाभारत कालीन कथा के अनुसार श्री कृष्णा जब यहां पर आए तो उन्होंने खंडहर हो चुके भवन का पूर्ण निर्माण करवाया।
लेकिन हजारों वर्षों बाद समय और आक्रमण कार्यों के द्वंद से जब वापस से खंडहर हो गया तब 1891 में ओरछा के सूर्यवंशी बुंदेली राजा महेंद्र प्रताप सिंह कि पत्नी ने यहां पर मंदिर के भीतरी भाग का निर्माण कर के राम और सीता जी कि मूर्ति को स्थापित किया जिनके ऊपर सोने का मुकुट शोभाय मान है मंदिर के बाहरी भाग का निर्माण टीकमगढ़ बुंदेलखंड के महाराजा कि पत्नी रेशमा कुमारी ने करवाया। भवन का स्वरूप बुंदेलखंडी राजाओं की ही देन है।
बाल्मीकि रामायण भवन
श्री मणिराम दास छावनी में स्थित है बाल्मीकि रामायण यहां संगमरमर के पत्थरों पर पूरी रामायण संस्कृत भाषा में लिखी देश-विदेश में रहने वाले हिंदू धर्म के लोग यहां राम नाम लिखकर जमा करते हैं। गोपाल दास जी महाराज ने सन 1976 में इससे स्थापित किया था।
अशर्फी भवन
लगभग 80 साल पहले रामानुज संप्रदाय के संत मधुसूदन आचार्य ने जब जमीन खरीद कर मंदिर का निर्माण शुरू करवाया। तब न्यू खुदाई में सोने की अशर्फियां से भरा हुआ एक कलश मिला। जिसके कारण इसका नाम अशर्फी भवन पर गया। लक्ष्मी नारायण के इस मंदिर में संस्कृत पाठशाला के साथ ही धार्मिक आध्यात्मिक संस्कारों की शिक्षा भी दी जाती है।
राजद्वार मंदिर
इससे अयोध्या का सबसे ऊंचा मंदिर कहा जा सकता है मान्यता अनुसार रामकोट में आने के लिए मुख्य प्रवेश द्वार था। विक्रमादित्य के जीवन आधार करने के बाद कई राजाओं ने समय-समय पर इसकी मरम्मत कराई। जिसमें राजा दर्शन सिंह से लेकर राजा जगदंबिका प्रताप सिंह तक शामिल थे। कहते हैं किसके गुंबदों पर सोने का आवरण चढ़ा है। यह मंदिर हनुमानगढ़ के ठीक बगल में स्थित है।
सूर्य कुंड
इसके बारे मे यह मान्यता है कि एक बार राजा दर्शन सिंह शिकार खेलते हुए जब यहां पर रुके। तो पास में छोटे से गड्ढे में भरा हुआ पानी पीकर वह चकित रह गया। पानी इतना मीठा था कि उन्होंने यहां पर न सिर्फ एक सरोवर का निर्माण करवाया। बल्कि पुरे नगर ही बसा दिया जिसे आज दर्शन नगर के नाम से जाना जाता है। खुदाई में मिले विशाल पत्थर को तराश कर सूर्य देव की मूर्ति बनाकर यह स्थापित की गई।
भरत कुंड
अयोध्या से 15 किलोमीटर दूरदर्शन नगर भारत कुंड मार्ग पर नंदीग्राम नामक स्थान है। पौराणिक कथा के अनुसार जब राम बनवास के लिए चले गए तो उनके वियोग में राजा दशरथ का देहांत होने पर भरत ने इसी कुंड में उनका पिंडदान किया था। कुंड के दूसरे छोर पर आज भी लोग पूर्वजों का पिंडदान करके बिहार के गया जाने की शुरुआत करते हैं।
यहां से कुछ ही दूरी पर वह स्थान है जहां पर भारत ने श्रीराम की अनुपस्थिति में उनकी पादुकोण को पूजते हुए 14 वर्षों तक एक सन्यासी की तरह सभी सुखों का त्याग करके अयोध्या का राज कार्य संचालित किया था। यहां स्थित एक कुएं के बारे में मान्यता है कि भरत ने चित्रकूट से वापस लौटते समय अपने साथ लाए हुए साथ गोपियों का जल संग्रहित किया था। 24 अक्टूबर 1918 से प्रारंभ होकर निरंतर 14 वर्षों तक यहां सीताराम का अखंड जाप होता।
मख़ोड़ा धाम
अयोध्या से 15 किलोमीटर दूर बस्ती जिले में स्थित है मखोड़ा धाम। यहां पर संतान का सुख पाने के लिए लोग हवन एवं पूजन करते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार यही वह स्थान है जहां पर राजा दशरथ ने श्री ऋषि के मार्गदर्शन में पुत्र पाने के लिए यज्ञ किए थे जिसके परिणाम स्वरूप राम लक्ष्मण भरत एवं शत्रुघ्न पैदा हुए आज भी दूर-दूर से लोग यहां गहरी आस्था लेकर आते हैं। इन मंदिरों के अलावा आपको अयोध्या मे देखने के लिए हर सड़क पर कोई न कोई आकर्षण मंदिर व ऐतिहासिक भवन दिख जाएंगे जैसे दशरथ महल हनुमानगढ़ से कनक भवन की तरफ जाते समय यह मंदिर रास्ते में पड़ता है। मान्यता है कि इस महल को राजा विक्रमादित्य ने इस स्थान पर बनवाया था जहां पर राजा दशरथ का वास्तविक महल हुआ करता था।
तुलसी स्मारक
भवन इस दिव्य स्थान पर श्री रामचरितमानस की रचना हुई।
राज सदन
अयोध्या के राजा दर्शन सिंह का महल है आज भी अयोध्या के वर्तमान राजा यहां पर निवास करते हैं।
सुग्रीव किला
श्री राम ने सुग्रीव के लिए यह किला बनवाया था।
रत्न सिंहासन
यहां श्री राम का राज्याभिषेक हुआ था।
छोटी देवकाली
यहां सीता जी द्वारा शादी के बाद मायके से लाई गई मूर्ति स्थापित की गई।
स्वर्ग द्वार
सरयू नदी के किनारे सबसे पहले इसी घाट का निर्माण हुआ था।
भगवान कले राम
यह मंदिर नागेश्वर नाथ के पास ही है विक्रमादित्य उस समय की मूर्तियां जो पहले राम जन्म स्थान पर थी अब यहां स्थापित है।
ब्रह्म कुंड
इसका मूल नाम ब्रह्म तीर्थ है। गुरु नानक देव जगन्नाथ पुरी जाते समय अयोध्या के इसी स्थान पर ठहरे थे गुरु गोविंद सिंह का भी इधर आगमन हुआ था इसके अलावा नल नील किला अंगद तिल कुबेर तिल आदमी पौराणिक स्थान इनके अतिरिक्त अयोध्या में सरयू नदी पर कई घाट है कुछ घाटों के राम श्री राम और उनके परिवार के सदस्यों के नाम पर है जैसे रामघाट कौशल्या घाट सुमित्रा घाट लक्ष्मण घाट जानकी घाट इसके अलावा राजघाट अहिल्याबाई घाट चक्र तीर्थ घाट विश्व हरि घट प्रहलाद घाट नागेश्वर नाथ घाट वासुदेव घाट पाप मोचन घाट स्वर्गद्वार घाट नया घाट आदि।
अयोध्या में लगभग 31 कुंडिया सरोवर है जैसे रामसरोवर या राम तीरथ, दशरथ कुंड,भरत लक्ष्मण, शत्रुघ्न, सीता, मांडवी हनुमान, सुग्रीव, विभीषण, राधा रुक्मणी, व सूर्यकुंड आदि या प्रमुख साथ खड़े हैं निर्वाणी, खाकी, दिगंबर,निर्मोही,संतोषी निराला, लंबी, महानिर्वाणिया, खड़ा,रघुनाथ दास जी की छावनी एवं बाबा रामदास जी की गाड़ी। यात्रियों के रुकने के लिए यहां पर लगभग हर मंदिर के साथ धर्मशालाएं हैं जैसे कन्हैयालाल धर्मशाला, बिरला धर्मशाला, मुंबई की सेठानी की धर्मशाला, भावनगर की रानी की धर्मशाला, सेठ मोहनलाल, सेठ लखनऊ वाले, सेठ सूरजमल, सेठ शिवरीनारायण की धर्मशाला आदि।
यहां पर यात्रियों के रुकने के लिए उचित व्यवस्था होती है अयोध्या धाम में पूरे वर्ष पर्व उत्सव मनाया जाते हैं साथ ही कई मे ले भी लगते हैं जैसे रामनवमी, रामानुज जयंती, जानकी जन्म, सरयू जयंती, रथ यात्रा तुलसी जयंती, गुप्तार घाट का मेला, रक्षाबंधन, रामलीला, भरत मिलाप, हनुमान जयंती कार्तिक पूर्णिमा, श्री राम विवाह, महाशिवरात्रि आदि। इतनी जानकारी के समेटने के बाद भी संभव है अभी बहुत सारी चीज छूट गई हो।
+ There are no comments
Add yours