इज़राइल – फ़िलिस्तीन विवाद की शुरुआत

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इज़राइल – फ़िलिस्तीन विवाद की शुरुआत

इज़राइल –किसी भी विवाद की शुरुआत अचानक कभी नही होती है उसी तरह फ़िलिस्तनी और इज़राइल के विवाद की पृष्ठभूमि भी इज़राइल के स्थापना के साथ शुरु हो गई थी जब ईस्ट इंडिया कम्पनी ने फ़िलिस्तनी की ज़मीन में इज़राइल को बसा दिया था
ईस्ट इंडिया कम्पनी ने फ़िलिस्तनी के ज़मीन के 48% भाग में इज़राइल को बसा दिया और फ़िलिस्तनी को भी 44% जमीन का हिस्सा देते हुए 8% हिस्सा UNO ने अपने पास रख लिया वो था यरुशलम ।

यरुशलम फ़िलिस्तन की राजधानी थी अरब देश व फ़िलिस्तनी इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नही हुए और उन्होंने इसका पुरज़ोर विरोध किया उसी समय से यह विवाद शुरू हो गया था क्यूँकि यरुशलम ही तीनो (यहूदी, ईसाई और मुशलमनो) के आस्था का केन्द्र रहा है

 ईसाई –

यरुशलम के बेतलेहम गाँव में ईशामसीह का जन्म हुआ था इस वजह से ईशाइयो के लिए यह ख़ास है।

मुसलमान –

मुशलिमो की तीसरी पवित्र तीर्थ स्थल अल-अक्सा मस्जिद है जो यरूशलेम में है।

यहूदी –

यहूदियों का यह आदि स्थान है क्यूँकि इनके पूर्वज यही के थे इसलिए इसे वे अपना पवित्र स्थान मानते है
किसी भी युद्ध की कई वजह हो सकती है जिसमें ये मुख्य हैं।

  •  स्वतंत्रता
  • अपने अस्तित्व की रक्षा
  •  विस्तारवादी नीति
  •  अहं की सन्तुष्टि

युद्ध शब्द अपने आप में ही विनाश का प्रतीक है।
युद्ध कीं विभीषिका का गवाह मानव समाज आदिकाल से रहा है
यह अकाट्य सत्य है कि युद्ध मानव के विनाश को ही जन्म देता है फिर भी आदिकाल से आपसी रंजिश से लेकर विश्व युद्ध तक पर विराम नहीं लगाया जा सका है।

इजराइल और फिलिस्तिन विवाद व युद्ध भी इन्ही वजहों की उपज है।अगर दुनियां मे किसी के साथ सबसे ज्यादा अत्याचार हुआ है तो वे यहूदी है ।

इजराइल यहूदीयो का देश है । यह एक छोटा सा देश है जो चारो ओर से दुश्मनों से घिरा हुआ है । हिटलर के द्वारा 60 लाख यहूदियों को कई तरह की यातनाओं द्वारा खत्म कर दिया गया था। यहूदी अपने ज्ञान के दम पर अपने अस्तित्व को बचाने मे सफल रहे । अब इजराइलियो का मनना है कि अब यदि वह हार जाता है तो वह खत्म हो जाएगा इस तरह इजराइल के लिए यह एक अस्तित्व की लड़ाई है।

इसलिए वह हारने को तैयार नही है और आपने विकास के रास्ते मे आने वाले को मिट्टी मे मिला देना चाहता है।

फिलिस्तिन मे इजराइल का ही सासन चलता है। वह उन्हे जल, थल, नभ कोई भी सेना रखने की
इजाजत नही देता है । फिलिस्तिनी अपना झंडा भी नहीं लगा सकते है । इस हालत में इसे आतंकवादी कार्यवाही कहे या स्वतंत्रता संग्राम।

यहाँ मैं एक बात स्पष्ट करना चाहती हूँ की मैं युद्ध की हिमायती नही हु और ना ही युद्ध में अमानवीय कृत्य की समर्थक।

कई देशों द्वार कहागया है कि फिलिस्तिनीयो को भी अलग देश का दर्जा मिलना चाहिए ताकि वे स्वनतात्र पूर्वक सासन करते हुए अपना विकाश कर सके इजराइल और अन्य परोसी देश फिलिस्तिन की ज़मीन पर लगभग क़ब्ज़ा कर चुके है फिलिस्तिन अब सिर्फ़ 12% ही बचा था । देखते है अब कितना बचता है ।

जब तक विश्व मानव जाति के कल्याण को ऊपर नही रखेगा युद्ध अस्तित्व मे बना रहेगा और मानव जाति का विनाश होता रहेगा और सबसे बड़ी बात इसमें मानवता शर्मसार होती रहेगी।

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