सोनागाछी! कोलकाता की ‘बदनाम’ गली…..

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सोनागाछी! कोलकाता की ‘बदनाम’ गली…..

सोनागाछी शब्द आपके कानों में कई बार गूंजा होगा. कभी रसीली और चटपटी गप के रूप में…तो कभी दर्दभरी लड़ियों जैसी दुखांत कहानियों की तरह. यहां की 10 बाई 10 की खोलियों से निकलती इन ध्वनियों के अपने-अपने मायने हैं. किसी के लिए ये खालिस मनोरंजन है, जहां रकम के बदले एक सौदा है…तो अगले ही पल ये जिल्लत और जिंदगी की कहानी है, जहां घोर अंधियारा है. न कोई सितारा है…न आफताब।

नगमा निगार साहिर लुधियानवी सोनागाछी के इस विरोधाभास को फिल्म चांदी की दीवार के एक गीत में बड़ी तकलीफ के साथ पेश करते हैं. इस रचना में दुनिया से उनकी शिकायत है. मोहम्मद रफी इस गीत को जब स्वर देते हैं तो सोनागाछी अपनी रौ में अपनी पहचान के साथ सामने आ जाता है।

ये दुनिया दो रंगी है,
एक तरफ से रेशम ओढ़े, एक तरफ से नंगी है
एक तरफ अंधी दौलत की पागल ऐश परस्ती
एक तरफ जिस्मों की कीमत रोटी से भी सस्ती
एक तरफ है सोनागाछी, एक तरफ चौरंगी है
ये दुनिया दो रंगी है।

एक अनुमान के मुताबिक सोनागाछी में करीब 10 हजार वेश्याएं कई सौ बहु मंजिल इमारतों में देह का धंधा करती हैं. यह इलाका उत्तरी कोलकाता के शोभा बाजार के पास है. शोभा बाजार के पास स्थित चित्तरंजन एवेन्यू में है. बता दें कि इस धंधे से जुड़ी महिलाओं को लाइसेंस दिया जाता है। हर साल पश्चिम बंगाल में दुर्गापूजा के दौरान मूर्ति निर्माण में इन क्षेत्रों की मिट्टियों को मां की मूर्ति में शामिल किया जाता है।

आखिर इस इलाके का नाम सोनागाछी कैसे पड़ा?

सोनागाछी, सोनागाछी यानी सोने का पेड़. हम तो यही जानते हैं कि सोना निर्जीव वस्तु है. कीमती धातु है और इसका कोई पेड़ नहीं होता है, तो फिर शोभाबाजार के पास सोने का गाछ कहां से आया?

इतिहासकार पीटी नायर की किताब ‘A history of Calcutta’s streets’ के अनुसार इस इलाके में सनाउल्लाह नाम का एक खूंखार डकैत अपनी मां के साथ रहा करता था। कुछ दिन बाद उस डकैत की मौत हो गई, एक दिन सनाउल्लाह की रोती हुई मां ने अपनी झोपड़ी से एक आवाज सुनी,“मां तुम मत रो…मैं एक गाजी बन गया हूं, इस तरह निकला सनाउल्लाह से सोना गाजी का लेजेंड यानी कि किंवदंती।

इस तरह से कालांतर में किंवदंतियों में डकैत सनाउल्लाह को कथित रूप से संतत्व प्राप्त हुआ। इतिहासकार नायर कहते हैं कि सनाउल्लाह की मां ने अपने बेटे की याद में यहां एक सुंदर मस्जिद बनवा दी, इसे सोना गाजी के मस्जिद के नाम से जाना जाने लगा, और धीर-धीरे लंबे कालखंड के बाद ये मस्जिद पूरी तरह से गायब हो गई, इस मस्जिद की वजह से पड़ोस के इलाके का नाम मस्जिद बाड़ी पड़ा, जबकि सनाउल्लाह गाजी बदलकर सोना गाजी हुआ और फिर बदलते-बदलते सोनागाछी हो गया।

हालांकि सोनागाछी का प्रारंभिक इतिहास नहीं मिलता है, इस बात की भी सही जानकारी नहीं है कि कैसे सोनागाछी एक रेडलाइट एरिया में बदल गया,

हालांकि साल भर से चल रहे कोरोना के कहर ने सोनागाछी की रंगत फीकी कर दी है, एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग एनजीओ के डाटा के मुताबिक यहां 89 प्रतिशत सेक्स वर्कर कर्ज के जाल में फंसी हुई हैं. उन्होंने जीवनयापन के लिए दलालों और वेश्यालयों के मालिकों से उधार लिया है. इस कारण उनका शोषण और हो सकता है. साथ ही महामारी के कारण सुरक्षा व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए लोग खुद भी सोनागाछी का रुख नहीं कर रहे हैं।

रिपोर्ट की मानें तो 73 फीसदी सेक्स वर्कर देह व्यापार को त्यागना भी चाहती है, लेकिन वह चाहकर भी ऐसा नहीं कर पाती हैं, क्योंकि उनके उपर काफी कर्ज है और उन्हें भविष्य में समाज द्वारा न स्वीकारे जानें का डर भी रहता है।

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